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@ अयुब अंसारी . चिरमिरी
नगर पालिक निगम चिरमिरी में मातमी पर्व मोहर्रम सोशल डिस्टेंसिंग के साथ इमामबाड़ा से दफन के लिए कर्बला ले जाया गया। हालांकि कोरोनावायरस के मद्देनजर इस बार चिरमिरी शहर में ताजिया को नगर भ्रमण के लिए नहीं निकाला गया ज्ञात हो कि यह मातमी त्यौहार सुन्नी और शिया समुदाय के द्वारा गमी के साथ मनाया जाता है। मोहर्रम पर्व से ही इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है। ज्ञात हो कि इस्लामिक नए साल की दस तारीख को नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन अपने 72 साथियों और परिवार के साथ मजहब-ए-इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ कोे जिंदा रखने के लिए शहीद हो गए थे। इमाम हुसैन को उस वक्त के मुस्लिम शासक यजीद के सैनिकों ने इराक के कर्बला में घेरकर शहीद कर दिया था। लिहाजा, 10 मोहर्रम को पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद ताजा हो जाती है। जिसमें कहा जाता है किकत्ले हुसैन असल में मरग-ए-यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद "दरअसल, कर्बला की जंग में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हर धर्म के लोगों के लिए मिसाल है। यह जंग बताती है कि जुल्म के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए, चाहे इसके लिए सिर ही क्यों न कट जाए, लेकिन सच्चाई के लिए बड़े से बड़े जालिम शासक के सामने भी खड़ा हो जाना चाहिए।
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