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शनिवार, 5 सितंबर 2020

महार,माहरा,तेलंगा,प्रधान जातियों के मात्रात्मक त्रुटियों को सुधारने बीजापुर विधायक ने विधानसभा में उठाया सवाल



तहकीकात न्यूज @ मनीष सिंह . सुकमा

 छत्तीसगढ़ विधानसभा के विगत सत्र में  महार,माहरा,तेलंगा,प्रधान जातियों के मात्रात्मक त्रुटियों को सुधारने बाबत बीजापुर विधायक व्दारा प्रश्न पूछा गया था।प्रश्न के जवाब में क्या शासन की ओर से कहा गया, उस पर चर्चा करना यहां मद्दा नहीं है।यह है कि महार व माहरा के बीच  मात्रात्मक  त्रुटि का अन्तर भर है या उससे आगे भी कुछ है। त्रुटि सुधार के संबंधित मामला अब न्यायालय में विचाराधीन हैं। निश्चित रूप से इससे हजारों हजार को लाभ होगा। परन्तु यह एक बुनियादी प्रश्न है कि महार व माहरा जाति क्या एक ही जाति है? यह सभी को मालूम है और होना चाहिए कि वे दोनों अलग-अलग  जातियां हैं।महार जाति के लोग मुख्य रूप से बीजापुर जिले में निवास करते हैं और माहरा जाति  के लोग बस्तर रियासत के सभी क्षेत्रों में फैले हुए हैं। माहरा जाति का बस्तर के प्राचीन इतिहास से गहरा संबंध है। बस्तर के दो प्रसिद्ध स्थान दन्तेवाड़ा ( जत्तावाड़ा) और जगदलपुर ( जगतुगुड़ा) इस जाति के लोगों का ही मूल निवास था।सच यह है कि बस्तर की मूल जातियां यह कब कब आयी होगी इसका यहां के इतिहास में ठीक ठीक उल्लेख नहीं है।

महार व माहरा दो अलग जातियां के बावजूद गज़ब ये हो गया है कि बीजापुर जिले में महार जाति जो निवास करती है उनके आजादी के पूर्व के सभी राजस्व रिकार्ड में माहरा जाति दर्ज है। यही सारा पेंच आकर अटक गया है। इन दोनों जाति के बीच मात्रा की त्रुटि की बात यही हो रही है।जो मूल रूप से माहरा है  उसमें कोई मात्रात्मक त्रुटि नहीं है।

बस्तर के सभी लोगों को मालूम है कि माहरा जाति के लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर पिछले ३०वर्षो से अधिक समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। उनके इस मांग के पिछे वर्ष १९५०एव १९५१ का वह शासन आदेश है जिसमें माहरा जाति को जनजाति सूची में शामिल किया गया था, जो बाद में रिकार्ड में गायब कर दिया गया है। इस अन्याय के विरुद्ध भी उनकी लड़ाई थी और है।

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